शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

कहानी  एक बेटी की 


            कुछ बातें  या घटनाएँ दिल को छू जाती है और मन होता है कि उसके बारे में किसी से कुछ बातें करें. वह इतना झकझोरती है कि मन उसे दिल में छुपा के भी नहीं रख सकता . रखने से तो बेहतर है उसे बाँट दे ताकि यदि किसी को इससे कुछ सीख लेनी हो तो ले, वरना जो कुछ भी समाज में होता है उसे देखकर आँखे तो नहीं मूंद सकते . जितना हमसे हो सके उतना जरुर करनी चाहिए .
                   ये कहानी भी एक बेटी की है जो शायद हमारे आस-पास की ही है . मै न चाहते हुए भी किस्तों में उसके बारे में बताना चाहती हूँ. मुनिया नाम रखी हूँ उसका पर ये सही नाम नहीं है. पैदा होते ही नाले के पास फ़ेंक दी गयी थी. नाजायज संतान नहीं थी, जो माँ को डर होता . जायज संतान थी पर बेटी जो थी . बेटे की आस में कई बेटियां हो गयी पर अभी भी मन-बाप को बेटे की आस थी . 
                  मुनिया जब पैदा होने को थी, उसके पिता ने उसकी माँ की बड़ी सेवा की , मुनिया की दादी भी अपनी बहु की सेवा में लगी थी पर किस्मत में मुनिया को आना था सो वो आ गयी और हो गयी एक भारतीय माँ की मुसीबत. अब  तो  डर ये था कि मुनिया  का बाप कैसा रूप दिखायेगा, शामत आ गयी सास-बहु की. दोनों औरतों ने एक-दूसरे की ओर देखा , मानो अब उन्हें ही कुछ करना होगा . ये तो ठीक था कि दोनों औरतों ने औरत का दर्द महसूस किया , वरना आफत तो सिर्फ मुनिया की माँ पर आती. संयोग अच्छा था कि बगल वाले बेड पर मुनिया के साथ पैदा हुआ एक बच्चा था जो लड़का था .