गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

खिलने तो दो फूल बनकर

खिलने तो दो फूल बनकर 

आफरीन गयी सदा के लिए,
अब किसकी बारी जाने के लिए?
जाते तो सभी हैं समय के साथ 
लेकिन बेटियों का क्या कसूर 
जन्म लेते ही छीन  ली जाती जिन्दगी 
उनके हिस्से की ख़ुशी 
वो मुस्कराहट और ममता 
घिनौने से सच को 
रोकोगे कब तुम?

वो नन्हीं कली है  
बस खिलने तो दो,
फूल बन कर वो 
बगिया को महकाएगी 
आगे बढ़कर वो 
संसार रच पायेगी  ।

एक बेटी ही 
बनवाती रिश्ते नए 
जोड़ सबको वो गढ़ती है 
सपने नए 
तो खिलने दो उसको भी 
एक फूल बनकर 
न रोको उसे 
जीने दो जी भर के।   

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

भगवान महावीर : अहिंसा का सन्देश

          भगवान महावीर : अहिंसा का सन्देश

                       अहिंसा परमो धर्म:, भगवान महावीर ने अहिंसा की परिधि का विस्तार किया है । यह अहिंसा सिर्फ पशु वध के रोक तक सीमीत नहीं है बल्कि भगवान महावीर के अहिंसा का विस्तार बहुत दूर तक है । इसमे मन को भी अहिंसा का रूप धारण करने को कहा गया है अर्थात हमें अपने मन को शुद्ध रखना चाहिए , किसी के प्रति दुर्विचार नहीं रखनी चाहिए और न ही किसी को अपनी कडवी बातों से चोट पहचानी चाहिए । यह सही है कि सत्य कडवा होता है लेकिन यदि इससे किसी के ह्रदय को चोट पहुंचे तो यह तो हिंसा ही हुआ क्योंकि यह चोट भी गहरा जख्म देता है । अतः इसे भी हिंसा की श्रेणी में रहनी चाहिए ।
                 
                           मनुष्य को मन, वचन और कर्म से हिंसा नहीं करनी चाहिए । हमारी कठोर वाणी भी हिंसा की श्रेणी में ही आती है । पर हम भगवान महावीर  की जयंती तो मानते है लेकिन कभी उनके सिधान्तों पर अमल नहीं करते । मानव अपनी इस प्रवृति को छोड़ नहीं पाता और जब भी मौका मिलता वह शब्द वाणों को चला ही देता है जो ऐसे  होते है की भीतर तक घाव करते हैं। 

                        अहिंसा के महाव्रत  ने पूरे विश्व को शांति का सन्देश दिया है , रास्ता दिखाया है और मानव के ह्रदय में प्रेम का सन्देश अर्पित किया है । भगवान् महावीर ने कहा है कि हर जीव को  जीने का अधिकार है , जियो और जीने दो । यह सन्देश यदि अपना लिया जाय तो कल्याण स्वयं होगा । आज विश्व को इसी की आवश्यकता   है ।