शेष भाग ...........यशोधरा का वियोग ........
दुःख तो बहुत यशोधरा को और इस बात का और अधिक था कि क्यों उसे सोते हुए छोड़ उसके स्वामी चले गए ? एक बार जगा तो दिया होता , वो भी उन्हें जी भर के देख कर तृप्त हो लेती , लेकिन सिद्धार्थ क्या जाने नारी मन की व्यथा , समर्पण और आत्मशक्ति । वो भी नारी के उस कमजोर पक्ष की ओर ही देखे, जहाँ वो ममता और करुणा की मूर्ति बन बिछोह बर्दाश्त नहीं कर पायेगी । उन्हें लगा यशोधरा उन्हें मनुहार कर रोक लेगी, बाधक बन जाएगी उनके मार्ग का , फिर उनका उदेश्य कैसे पूर्ण होगा, यही था शायद उनके मन में , परन्तु ऐसा नहीं था । यशोधरा अपने पति के वैराग्य मन को पहले सा जानती थी । यदि उसे रोकना होता तो वो पहले ही प्रयत्न नहीं करती ? पुत्र जन्म तक सिद्धार्थ भी उनके साथ थे, तो क्या वो पति की बातों से उनके ह्रदय का भाव नहीं जानती थी ? अवश्य जानती थी और उसे कोई मलाल नहीं था , बस दुःख इस बात का था कि स्वामी का दर्शन वह उस पवित्र बेला में न कर सकी जिस समय उनका महाभिनिष्क्रमण हो रहा था ।
यदि हम यशोधरा को कमजोर नारी मानेगे तो वो गलत होगा क्योंकि वर्षों लगे सिद्धार्थ को बुद्ध बनने में और तब तक वो , सामाजिक मानसिक प्रताड़ना को सहती रही । वो कमजोर होती तो कब का अपने प्राण त्याग दी होती । इतिहास यही कहता कि बुद्ध के गृह त्याग के पश्चात उनकी पत्नी यशोधरा इस विरह वेदना को सहन नहीं कर सकी और प्राण ही त्याग दिए , लेकिन नहीं वो जीवित रही और अपने पुत्र की अच्छी परवरिश की । उन्हें तो इंतजार था अपने पति के बुद्धत्त्व की प्राप्ति का । वह उस सुख का आनंद लेना चाहती थी जिसे सिद्दार्थ पाने के लिए व्याकुल थे और गृहत्याग किया । महाभिनिष्क्रमण को फलीभूत होते देखना चाहती थी वो ।
बुद्ध बनने के बाद पूरी दुनिया उन्हें भगवान् के रूप में पूजने लगी लेकिन यशोधरा फिर भी अकेली रह गयी उसके त्याग को किसी ने नहीं समझा । उसकी महत्ता को गौण क्यों कर दिया गया ?