एक कली अभी तो खिली थी
अभी अभी तो खिली थी
वो एक उपवन की कली थी
कुछ अलग किस्म की बनी थी
दुनिया को समझने चली थी
एक भौंरा कुछ बौराया
उपवन से ही मंडराया था
उस कली को घूरता रहता था
कुछ गन्दी नीयत रखता था
एक ऐसी आंधी आई थी
वो कली उसमे उलझाई थी
लड़ते - लड़ते थक आई थी
फिर भी हिम्मत ना हारी थी
ताकत के आगे बेबस थी
उसकी दुनिया अब उजड़ी थी
जीने की चाहत अब भी थी
अंधियारी में भी रोशनी थी
एक कली अभी तो खिली थी ............................
अभी अभी तो खिली थी
वो एक उपवन की कली थी
कुछ अलग किस्म की बनी थी
दुनिया को समझने चली थी
एक भौंरा कुछ बौराया
उपवन से ही मंडराया था
उस कली को घूरता रहता था
कुछ गन्दी नीयत रखता था
एक ऐसी आंधी आई थी
वो कली उसमे उलझाई थी
लड़ते - लड़ते थक आई थी
फिर भी हिम्मत ना हारी थी
ताकत के आगे बेबस थी
उसकी दुनिया अब उजड़ी थी
जीने की चाहत अब भी थी
अंधियारी में भी रोशनी थी
एक कली अभी तो खिली थी ............................