माँ के नाम
मैं वही हूँ ,
जो तुम्हारे आँचल की छाँव में,
प्यार और दुलार में,
पली-बढ़ी,
नन्ही कली से फूल बनकर खिली,
तब तुमने सुन्दर सपने देखे,
मेरे लिए ,
वही सपने जो हर माँ देखती है ,
एक बेटी के लिए,
तुम्हारे भी सपने पूरे हुए ,
तुम खुश थी ,
जब मैं दुल्हन बनी थी ,
तुम्हारे पाँव जमीं पर नहीं थे,
खुशियों को समेटे हुए तुम ,
प्रतीक्षारत थी ,
उस पथिक के लिए,
जो मेरा हमसफर था,
तुम्हीं ने तो चुना था उसे ,
मेरे लिए ,
शहनाईयों की गूंज के साथ,
परम्पराओं, रीति-रिवाजों के बाद,
तुमने मुझे विदा किया,
मेरे अपनों के साथ,
तब तुम रोई थी,
मैं भी रोई थी,
पर क्यों ?
तुम्हीं तो भेजना चाहती थी,
मेरे घर,
जो कभी अनजाना था,
और मैं भी तो जाना चाहती थी ।
पर माँ !
मुझे तो जाना ही था ,
जहाँ तुम मुझे भेजना चाहती थी,
अपने अरमानों की डोली में बिठाकर ,
दूर , एक अनजाने डगर से,
उस मंजिल तक,
जहाँ मेरी मंजिल थी ,
फिर दोनों की आँखों में आँसू क्यों ?
man ko chhoote hue bhav ....
जवाब देंहटाएंbahut bhavpurn rachna h, aabhar.
जवाब देंहटाएंkhushi ke aansu bhi to hote hain , bichadne ka dukh bhi hota hai...
जवाब देंहटाएंaap sabhi ko dhayvad
हटाएंकितना दर्द समेत लिया है आपने इस कविता में.. बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंmaa ke naam bahut hi sundar prastuti
जवाब देंहटाएंdhanyvad
हटाएंdil ko chhu jaane wali rachna,bdhaai aap ko,pahli baar aap ke blog par aana hua,khushi huee rachna padh kar
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी.... आँखें नम हुयीं आपकी रचना पढ़कर .....
जवाब देंहटाएंमाँ के प्यार को समर्पित है मेरी रचना |
हटाएंtouchy
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंबेहद भावप्रवण रचना।
जवाब देंहटाएंमाँ ने जिन पर कर दिया, जीवन को आहूत
जवाब देंहटाएंकितनी माँ के भाग में , आये श्रवण सपूत
आये श्रवण सपूत , भरे क्यों वृद्धाश्रम हैं
एक दिवस माँ को अर्पित क्या यही धरम है
माँ से ज्यादा क्या दे डाला है दुनियाँ ने
इसी दिवस के लिये तुझे क्या पाला माँ ने ?