सिद्धार्थ का महाभिनिष्क्रमण एवं यशोधरा का वियोग
यशोधरा भारतीय इतिहास की वह नारी है जिसके आँसू बहे तो लेकिन व्यर्थ नहीं गए । न तो किसी ने इन आंसुओं पोछा और न ही उसे संजो कर ही रखा । आज भी बुद्ध के अवशेषों के लिए हम खाक छान रहें हैं और उसे संजो कर रखने की होड़ लगी है । देश विदेश सभी बुद्ध के प्रति श्रद्धा से नतमस्तक हैं । एक से एक मठ बनाये जा रहे हैं , लेकिन क्या किसी ने ये सोंचा कि बुद्ध को महान बनाने में यशोधरा का क्या योगदान था? क्या वो तड़पी नहीं होगी जब युवावस्था में ही उनके पति उन्हें छोड़ वैराग्य की ओर प्रस्थान कर गए ? कौन पत्नी होगी जो अपने पति से दूर रहना चाहेगी ? वो भी तब जब वो पहली बार माँ बनी हो । अपने संतान को उसके पिता के गोद में वो नहीं देखना चाहेगी ? एक नारी के ह्रदय पर क्या बीतती होगी ये तो वही जानती है।
समाज भी वही और लोग भी वही , बस काल विशेष का फर्क । ताने तो यशोधरा को भी सुनने पड़े होंगे । जब तक सिद्धार्थ भगवन बुद्ध नहीं बने तब तक तो यशोधरा ही दोषी मानी जाती होगी और लोग कहते होंगे कि इसमें अपने पति को मोहित करने की क्षमता ही नहीं है या फिर सिद्धार्थ उसे पसंद ही न करते हों। जितनी मुंह बातें होती होंगी और बेबस हो उसे सब सहन करना पड़ता होगा । अपने ही लोगों के बीच बेगानी हो गयी होगी वो, पर उसमे इतनी हिम्मत तो जरुर थी कि वो वर्षों तक सब कुछ सहन कर पायी । आखिर किसको उलाहना देती वो? खुद को या अपने पति को ? जो पति संसार के कल्याण के लिए उसे सोयी अवस्था में छोड़ कर चला गया उसे दोष देकर क्या वो समाज के लिए अच्छा करती ?
एक विचारणीय प्रश्न .........................शेष अगली बार
यह प्रश्न तो सचमुच विचारणीय है. लेकिन इस पर विचार ज्यादा नहीं हुआ है. लेकिन अब सोच रही तो स्थिति की गंभीरता एक अजब चित्र खींचती है.
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