एक सवाल बन गयी है अमानवीयता
एक लड़की जो पुरुषों के अत्याचार से असमय ही मौत के आगोश में चली गयी पर वो अकेली नहीं थी जो क्रूरता का इतना अधिक शिकार बनी बल्कि ऐसी अनेक लड़कियां भी उसी की तरह अमानवीयता की शिकार बनी और अभी भी बनती जा रही हैं । हम सभी मानसिक रूप से दुखी हैं और प्रार्थना करते है कि फिर किसी भी लड़की को दामिनी की तरह ............शब्द नहीं हैं । हम चाह कर भी कुछ लिख नहीं पा रहे हैं । इस घटना ने इतना दर्द दिया कि शब्द ही खो गए हैं, पर जाते - जाते वो समाज को ज़गा गयी । आज हर घर से इस तरह की घिनौनी हरकत के खिलाफ आवाज उठ रही है ।
विकास की दौड़ में हम आगे तो बढ़ते जा रहे हैं लेकिन ये भी सही है कि मानवता मरती जा रही है , इंसानियत पीछे छूटती जा रही है । रोज - रोज लड़कियों और महिलाओं पर अत्याचार होते जा रहे हैं और अफसोस के दो बोल के बाद हम आगे बढ़ जाते हैं । क्या हमारी नैतिक जिम्मेदारी यहीं तक है?
जिन्दगी के उलझते तारों में जकड़ते हुए हम से स्वयं से कब दूर होते चले गए , पीछे मुड़कर देखें भी तो क्या ...............सारे रस्ते तो हमने ही बंद किये हैं । मनोरंजन के नाम पर फूहड़ता जब हम देखना पसंद करते हैं तभी तो दिखाई जाती है । यदि नंगी अभिनेत्री का नाच हमें भाता है और हम उसे मुंहमांगी रकम देते हैं तभी तो वो नाचती है । क्या दर्शकों में से कोई उसके नंगे बदन को ढकने की कोशिश करता है , नहीं न ? इसमें दोष दिखाने वाले का ही तो नहीं है , देखने वाले का भी है । पिता यदि बच्चों के सामने सामने नैतिकता त्याग देगा तो उसका बच्चा उससे भी आगे बढेगा , लेकिन इतना सोचने की फुरसत किसे है , वक्त आएगा तो देखेंगे , यही सोंच हमारी बन चुकी है।
दोष तो लड़कियों के आधुनिक पहनावे पर आराम से लगाया जा सकता है लेकिन क्या पूरा बदन ढंके लड़की हवस का शिकार नहीं बनी है ? हमारे पास सवाल भी है और जबाब भी, पर चिंतन , मनन की फुरसत कहाँ है ? आरोप लगाकर आगे बढ़ जाना यहीं तक तो सीमित रह गए है हम ।
मनोविकारों के जन्म लेने के कारण कहाँ छिपे हैं ये जानने की कोशिश तो हमें ही करनी होगी । जो समाज बच्चे के जन्म के साथ ही उत्सवों में शामिल हो जाता है और उस बच्चे के जीवन के समस्त उत्सवों का सहभागी होता है , वह समाज उस बच्चे के नैतिक विकास का जिम्मेदार भी होता है । कब उस बच्चे में मनोविकार पैदा हो गया , इसका जबाब इसी समाज में ही छिपा हुआ है । प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों को सजा देने में तो समाज आगे रहता है लेकिन क्या यही समाज एक लड़के के कुमार्ग पर चलने की सजा नहीं दे सकता ?
एक लड़की यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही सबकी नजरों में चढ़ जाती है , उसकी हर अदा आँखों में चुभने लगती है और किसी न किसी घर से लांछन की आवाज निकल ही जाती है लेकिन वही काम यदि लड़का करता है तो उसे पूरी आजादी रहती है क्योंकि यही कहा जाता है कि वो तो लड़का है । लड़के को सजा के बदले बढ़ावा मिलता है और यदि लड़की उस लड़के के छेड़ - छाड़ की शिकार बनती है तो उसे चाहरदीवारी में कैद कर दिया जाता है शादी होने तक । क्या समाज की जिम्मेदारी यही है ?
वक्त आ गया है कि सभी को जागना है । सभी के घर में भविष्य की पीढ़ी पल रही हैऔर उसे नैतिकता का पाठ हमें ही पढ़ाना है ।
हमें यह कदम उठाना होगा कि .............................
---जब बेटी घर से बाहर जाय तो निर्भीक और सावधान होकर जाए ।
---अपनी हर बात घर में शेयर करे ।
---माता - पिता उसके सबसे अच्छे दोस्त हो ।
---लड़के घर की महिलाओं की इज्जत करें ।
---जिस घर में महिलाओं का सम्मान होता है उस घर के बच्चे भी महिलाओं का सम्मान करते हैं ।
---हर बहन अपने भाई से यह वचन ले कि वो किसी भी लड़की के साथ गन्दी हरकत नहीं करे ।
---गन्दी भावनाओं को दूर करने कोशिश करें ।
---बेटा यदि घर में क्रूरता का व्यवहार करे तो समझ लेना चाहिए कि उसे परिवार के सहयोग की जरुरत है ।
---प्रेम संबंधों पर खुल कर बात करें ।
---आधुनिकता आज की जरुरत है लेकिन फूहड़ता नहीं ।
---लड़की जींस में भी सभ्य ही होगी लेकिन अंगों का प्रदर्शन उसके मन की विकृति है ।
इसके अलावे बहुत सारे ऐसे उपाय हैं जो हमें परिस्थितिवश उठाने होंगे क्योंकि नैतिकता का पाठ हमें ही पढ़ना होगा अपने बच्चों को तभी वे समाज के सभ्य नागरिक बन सकते हैं। अमानवीयता की हरकत करने वाले बच्चे हमारे ही समाज के किसी घर के चिराग होते हैं और उन्हें सुधारना हमारी ही जिम्मेदारी है ।
bahut hi sundar aur sakaratmk prastuti, tamam gatirodho ke bavzud hamari betiyan bulandiyo pr hai
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने ...
जवाब देंहटाएंनैतिकता का पाठ पढ़ाना समाज की जिम्मेदारी है ?
जवाब देंहटाएंRECENT POST शहीदों की याद में,
बिलकुल सही कहा आपने .........
हटाएंसार्थक चिंतन..... कई सारे कारन हैं जिनपर घर और बाहर हर जगह सुधार की आवश्यकता है...... दिए गए सुझाव भी सही और अर्थपूर्ण लगे
जवाब देंहटाएंआज सभी के मन में मंथन चल रहा है मोनिका जी
हटाएंhttp://www.parikalpnaa.com/2013/02/blog-post_6.html
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक चिंतन संध्या जी ! हर कोई अगर इन बातों का पालन करे .... तो ऐसे अपराध हों ही क्यों ...
जवाब देंहटाएं~सादर !!!
सामाजिक मूल्यों के ह्रास की क्षतिपूर्ति उनका पुनर्स्थापन है.
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