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मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

                            


एक कहानी सच्ची है पर ....................

समाज में आज एक ही बात अधिक चर्चा में है कि अपनी बेटियों को कैसे सुरक्षित रखते हुए बेहतर शिक्षा दी जाय । बेटियों को आगे भी बढ़ाना है और गलत कदम वो न उठायें यह भी देखना है , इसके साथ ही गन्दी नियत रखने वालों से उन्हें बचाना भी बेहद जरुरी है क्योंकि दामिनी के साथ जो हुआ वो सभी को जगा  गया ।
आज मैं जो भी लिख रही हूँ वो एक अलग कहानी है  और मैं उससे बहुत  ही व्यथित  हूँ , समझ में नहीं आता कि मैं अपने दिमाग से ये बात कैसे हटा लूँ। किसी कारणवश  मैं ये तो नहीं बता सकती कि ये बात कहाँ की है लेकिन इतना जरुर बता सकती हूँ  कि बिलकुल सच है । 

मैं हाल ही में वहां से लौटी हूँ और तभी से चाहती हूँ काश! वो लड़की जल्दी ही मर जाए ।शायद आप सोंचते होंगे कि कोई पीड़ित लड़की होगी लेकिन ये बात नहीं है , ये लड़की समाज के लिए कलंक है और उसके शर्मनाक हरकतों से घिन्न आती है । मेरे सामने पैदा हुई लड़की आज सेक्स रैकेट चलाती है जबकि हम बेटियों की सुरक्षा के लिए चिंतित हैं और ये प्रार्थना करते हैं कि किसी भी घर की बेटी के साथ दामिनी जैसा हादसा न हो लेकिन ये बेटी स्वयं इस दलदल में फँसी है और घर के लोगों के विरोध को स्वयं पर अत्याचार करार देती है । पता नहीं उसे ये काम क्यों अच्छा लगता है शायद पैसे और आधुनिक सामानों की चाहत । जब वो छोटी थी तो मेरे घर आती थी अपनी बुआ के साथ । लड़की की दादी बहुत ही संभ्रांत महिला थी जो अब जीवित नहीं रही । उसके सभी रिश्तेदार अच्छे  हैं लेकिन इसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी । उसकी बुआ उसे ब्यूटी पार्लर में काम सीखने के लिए भेजी और संभवत: वही  से वह  गलत संगत में पड़  गयी । संभवत: आधुनिक जीवनशैली की चाहत ने उसे इस ओर  धकेल दिया है ।

आज वो लड़की शराब पीकर कहीं भी पड़ी रहती है । जो लोग बोलते हैं या उसे किसी भी वजह से डांटते हैं वो पुलिस के पास रेप केस में उन्हें फसाने की धमकी देती है । आस - पास के सभी लोग उसकी करतूत जानते है लेकिन  किसी को हिम्मत नहीं है उसके खिलाफ आवाज उठाने की । परिवार वाले उसे समझा कर थक चुके है और उसे उसके हाल पर छोड़ दिए हैं ।

सवाल ये है कि मेरी नजर में वो एक लड़की है लेकिन उस जैसी हजारों-लाखों लडकियाँ अपने अस्तित्व को यूँ ही  ख़राब कर रही है और समाज यूँ ही मूकदर्शक बन कर बैठा है । चर्चाएँ तो सभी घरों में  होती हैं लेकिन कोई मजबूत हाथ  अभी तक नहीं उठा है इस मुद्दे पर । किसी में हिम्मत नहीं है कि समाज से इस गन्दगी को दूर कर सके । उसकी धमकी और कानून के डर  ने सबके मुंह बंद कर रखे हैं लेकिन इस  समस्या का समाधान नहीं होने पर छोटी बच्चियों पर इसका असर ख़राब होगा और ये भी हो सकता है कि उसके माध्यम से छोटी बच्चियों को अगवा कर जबरन इस धंधे में धकेला  जाय । काश ! कोई आगे बढ़ कर इस समस्या का समाधान करे ....................



शनिवार, 8 सितंबर 2012

           कितना सहेंगी हमारी बेटियां 

बिहार के सीतामढ़ी की कंचन बाला  जब ऊपर भगवान  के पास पहुंची होगी तो जरुर पूछी होगी कि मुझे लड़की क्यों बनाया ? काश ! मुझे भी लड़का बनया होता , मैं भी जी पाती शान से और पूरी कर पाती  अपने सपने , जो मैंने देखे थे । जी पाती आजादी से बंधनमुक्त आजाद पंछी की भांति । कोई मनचला हमें नहीं छेड़ पाता और न ही मुझे मानसिक प्रताड़ना प्रताड़ना मिलती । मेरी बात किसी ने नहीं सुनी और वो मुझे परेशान  करता रहा , अंत में मुझे मौत को गले लगाना पड़ा । जब मैं ही नहीं रहूंगी तो वो किसे तंग करेगा ?
                   यही सवाल छोड़ गयी है कंचनबाला समाज के सामने । उसकी बेबसी ने उसे आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया । कोई रास्ता नहीं बचा था उसके पास इसीलिए उसने अपने सुसाइड नोट में  ये लिखा । इसमें उसकी जैसी हजारों लड़कियों के साथ हो रहे अत्याचार की झलक मिलती है और उनकी बेबसी की झलक मिलती है ।
                 कंचन बाला भी उन्ही हजारों लड़कियों की तरह छेड़खानी की शिकार बनी और जब-जब उसने विरोध किया सजा उसे ही भुगतनी पड़ी । घर-परिवार के लोग उसे ही दोषी ठहराते रहे और वो मनचला उसे लगातार अपना शिकार बनाता  रहा । जितना उससे बन पड़ा उसने उसका विरोध किया । उसका भाई जब उसका रक्षक बना तो उसे उन बदमाशों ने काफी पीटा । जब रिपोर्ट लिखाने  थाने गयी तो पुलिस ने कोई सहायता नहीं की बल्कि उससे समझौता करने की सीख  दी । पुलिस यदि समय पर उसकी सहायता करती तो वो मौत को गले नहीं लगाती पर पुलिस ने सीख  दी कि इससे लड़की की बदनामी होगी , फिर तो वो बदमाश और भी आगे बढ़ गया । अब कंचन बाला हताश  हो चुकी थी । उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था । पढाई छूट  गयी । इस कच्ची उम्र में उसने समाज की गन्दगी को नजदीक से देखा । कितना मानसिक तनाव और बेबसी में होगी उस रात जब उसने आत्महत्या का निर्णय लिया होगा । अपने सुसाइड नोट में उसने पुलिस को जिम्मेदार ठहराया और प्रार्थना की कि उस बदमाश को सजा दी जाय ।
                   इस तरह की घटना के लिए कौन जिम्मेदार माना जायेगा ? अगर सही समय पर उसकी मदद की गयी होती वो आज हमारे बीच हंसती - खेलती होती ।

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

 गोहाटी की शर्मनाक घटना : क्या हर मोड़ पर दुशासन है खड़ा ?


                      मर चुकी है मानवता या कायर हो गया है समाज जिसके सामने एक लड़की को करीब 20-25 से भी अधिक लोग  नोच  रहे थे और तमाशबीन बन समाज देख रहा था , या फोटो खीचने और विडियो फ़िल्म बनाने में ही लोगों को आनंद आ रहा था , शायद इससे अच्छा सीन उन्हें फिर नहीं मिलने वाला था . जो हाथ कैमरा ऑन करने में लगा था वो हाथ उस लड़की को बचा भी सकता था लेकिन नहीं , तब ये सीन कौन लेता क्योंकि लड़की की इज्जत से ज्यादा जरुरी था उसके साथ हो रहे हादसे की फ़िल्म बनाना .एक दिन  उनके घर की बेटियों के साथ ऐसा होगा तब भी वे क्या फ़िल्म ही बनायेगे ?
                   ऐसे समाज में हम जी रहे हैं जहाँ हर मोड़ पर दुशासन खड़ा है और उसके द्वारा किये जा रहे चीरहरण की फ़िल्म भी बनायीं जाती  है, बार -बार देखने के लिए . इससे रोचक फ़िल्म जो नहीं मिलती देखने के लिए ,तो सबसे ज्यादा जरुरी था फ़िल्म बनाना , लड़की का क्या उस पर तो चरित्रहीनता का लेबल लगाने के लिए पहले से ही न्यूज तैयार रहता है . सदियों से नारी को यह  सम्मान समाज से ही मिलता रहा है बस रूप बदल गए हैं . हम आधुनिक जो होते जा रहे हैं तो ऐसे में हस्तिनापुर की राजसभा तो नहीं मिलेगी, तो भीड़ भरी रोड ही सही और न ही भगवन कृष्ण ही आने वाले थे जो उस बेचारी को उन बहशियों से बचा लेते . 
                        अब जागना होगा और इस तरह के दुशाशन से लड़ने के लिए अपनी बेटियों को भी तैयार करना होगा क्योंकि हम कृष्ण की उम्मीद नहीं करते और न ही उनकी भक्ति में लीन समाज की क्योंकि ये दोनों सिर्फ और सिर्फ मूकदर्शक बन के रह जाते हैं . हमें भी तैयारी  करनी होगी जिससे  हम इन दुस्साहसियों से अपनी बेटियों की रक्षा कर सके , अपनी बेटियों को साहसी बनाकर उनके अन्दर हिम्मत पैदा  करें ....................