गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

खिलने तो दो फूल बनकर

खिलने तो दो फूल बनकर 

आफरीन गयी सदा के लिए,
अब किसकी बारी जाने के लिए?
जाते तो सभी हैं समय के साथ 
लेकिन बेटियों का क्या कसूर 
जन्म लेते ही छीन  ली जाती जिन्दगी 
उनके हिस्से की ख़ुशी 
वो मुस्कराहट और ममता 
घिनौने से सच को 
रोकोगे कब तुम?

वो नन्हीं कली है  
बस खिलने तो दो,
फूल बन कर वो 
बगिया को महकाएगी 
आगे बढ़कर वो 
संसार रच पायेगी  ।

एक बेटी ही 
बनवाती रिश्ते नए 
जोड़ सबको वो गढ़ती है 
सपने नए 
तो खिलने दो उसको भी 
एक फूल बनकर 
न रोको उसे 
जीने दो जी भर के।   

15 टिप्‍पणियां:

  1. गहन ..बहुत सार्थक अभिव्यक्ति ....!!

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  2. कल 14/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. जीने दो जी भर के...वेदना का अच्छा चित्रण

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  4. bahut achha likha hai sach hai betiyan hi to do pariwar ko jodti hain.

    shubhkamnayen

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  5. एक बेटी ही
    बनवाती रिश्ते नए
    जोड़ सबको वो गढ़ती है
    सपने नए
    तो खिलने दो उसको भी
    एक फूल बनकर
    न रोको उसे
    जीने दो जी भर के।

    Aapke post par pahali bar aaya hun.Aachha laga. Dhanyavad.

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  6. सुन्दर रचना के लिये बधाई!

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  7. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
    फुर्सत मिले तो आदत मुस्कुराने की पर ज़रूर आईये

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