मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

 माँ के नाम

माँ 
मैं वही हूँ ,
जो तुम्हारे आँचल की छाँव में,
प्यार और दुलार में,
पली-बढ़ी,
नन्ही कली से फूल बनकर खिली,
तब तुमने सुन्दर सपने देखे,
मेरे लिए ,
वही सपने जो हर माँ देखती है ,
एक बेटी के लिए,
तुम्हारे भी सपने पूरे हुए ,
तुम खुश थी ,
जब मैं दुल्हन बनी थी ,  
तुम्हारे पाँव जमीं पर नहीं थे,
खुशियों को समेटे हुए तुम ,
प्रतीक्षारत थी ,
उस पथिक के लिए,
जो मेरा हमसफर था,
तुम्हीं ने तो चुना था उसे ,
मेरे लिए  ,
शहनाईयों की गूंज के साथ,
परम्पराओं, रीति-रिवाजों के बाद,
तुमने मुझे  विदा किया,
मेरे अपनों के साथ,
तब तुम रोई थी,
मैं भी रोई थी, 
पर क्यों ?
तुम्हीं तो भेजना चाहती थी,
मेरे घर,
जो कभी अनजाना था,
और मैं भी तो जाना चाहती थी ।
पर माँ !
मुझे तो जाना ही था ,
जहाँ तुम मुझे भेजना चाहती थी,
अपने अरमानों की डोली में बिठाकर ,
दूर , एक अनजाने डगर से,
उस मंजिल तक,
जहाँ मेरी मंजिल थी ,
फिर दोनों की आँखों में आँसू क्यों ?   

 

14 टिप्‍पणियां:

  1. कितना दर्द समेत लिया है आपने इस कविता में.. बहुत सुन्दर

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  2. dil ko chhu jaane wali rachna,bdhaai aap ko,pahli baar aap ke blog par aana hua,khushi huee rachna padh kar

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  3. हृदयस्पर्शी.... आँखें नम हुयीं आपकी रचना पढ़कर .....

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  4. माँ ने जिन पर कर दिया, जीवन को आहूत
    कितनी माँ के भाग में , आये श्रवण सपूत
    आये श्रवण सपूत , भरे क्यों वृद्धाश्रम हैं
    एक दिवस माँ को अर्पित क्या यही धरम है
    माँ से ज्यादा क्या दे डाला है दुनियाँ ने
    इसी दिवस के लिये तुझे क्या पाला माँ ने ?

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