महिला सशक्तिकरण वास्तविकता की ओर
बहुत कुछ बोला जा रहा है और स्पष्ट भी हो रहा है , महिलाएं हर ओर कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं , समय की गति के साथ महिलाओं ने भी चलना सीख लिया है । अबला से सबला की ओर बढ़ते उनके कदम आसान नहीं रहे और न ही निर्विघ्न । रास्ते मिलते गए और उनपर आती बाधाओं ने मार्ग अवरुद्ध भी किया लेकिन हौसला ऐसा रहा कि कदम बढ़ते चले गए।
हम उस देश नारी है जहाँ की आदर्श सीता हैं, सावित्री हैं । आज भी हमें यही आशीर्वाद दिया जाता है कि हम सीता की तरह धैर्यवान बने , सहनशील बने , अपना जीवन औरों के लिए समर्पित कर दें । हमारा भारतीय समाज आज भी एक आदर्श बहु और बेटी की कल्पना करता है लेकिन यह भी सही है कि अब भारतीय नारी बदल रही है । उसके आदर्श आज भी सीता ही है परन्तु वह सीता की तरह अन्याय को चुपचाप नहीं सहती है , आवाज उठाने लगी है , अपने हक़ को पाने के लिए परिवार और समाज को खुलेआम चुनौती दे रही है । संघर्ष में वह अपना आदर्श सावित्री और झाँसी की रानी को मान रही है तो शालीनता में सीता को । संघर्ष उसके जीवन कसौटी है तथा वह इसमे सफल होने के लिए कुछ भी कर सकती है।
एक डाक्टर की पत्नी जो किसी विद्यालय में टीचर है , अपने पति के साथ रहने के लिए संघर्ष कर रही है , जबकि पति किसी और स्त्री को पसंद करता है और इसे तलाक देकर दूसरी शादी करना चाहता है। मै उनसे पूछी कि जब आपका पति किसी और के साथ रहना चाहता है तो आप उससे स्वयं अलग हो जाय। इस पर उसका जबाब बड़ा ही सटीक मुझे मिला ---------"अगर उसे मेरे साथ नहीं रहना था तो शादी क्यों की? मेरे साथ बिताये मेरे कीमती दस साल मुझे वापस क्र दे मैं भी उसका साथ छोड़ दूंगी।" मै भी उसके जज्बे को सलाम कर उसकी सहयोगी बन गयी हूँ , तो यही है नारी सशक्तिकरण।
भले ही समाज तरक्की कर रहा है लोगों के सोंच बदल रहे हैं लेकिन सम्स्यें भी वही हैं , चाहे वो घरेलू हिंसा हो, या फिर दहेज़ की मार या फिर ऑफिस में शोषण , संघर्ष जारी है। अब नारी हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ रही. इसका उदहारण बिहार में मिल जायेगा। यहाँ की महिलाएं पंचायत से लेकर उच्च स्तर तक अपनी पहुँच बना रही हैं। सदियों से शोषित समाज की बालिकाएं साईकिल से विद्यालय जा रही हैं । अभी बिहार में आयोजित विश्व महिला कबड्डी , महिलाओं की बदलती सोंच की ओर बढ़ता एक और कदम है।
संध्या जी बहुत ही दमदार आलेख |होली की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंwww.jaikrishnaraitushar.blogspot.com
अब तो अनेक क्षेत्रों में पुरुष भी पिछड़े और पीड़ित दिख रहे हैं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप सभी को
जवाब देंहटाएंsarthak lekh ke liye badhai
जवाब देंहटाएंHoli Ki Shubkamnaye
इस बदलाव को और बल मिले यही आशा है..... सार्थक लेख
जवाब देंहटाएंबदलाव का दौर चल रहा है और इसमें जरूर बदलाव आने वाला है ... सार्थक पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंसार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
हटाएंकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर पधार कर अपनी राय प्रदान करें.
अच्छी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें डॉ संध्या !
धन्यवाद आप सभी को
हटाएंबेहद सार्थक व सटीक लेखन है आपका ...मेरे ब्लॉग पर आपके प्रथम आगमन का अभिनन्दन है ...आभार सहित शुभकामनाएं ।
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