एक उत्साहपूर्ण कदम बढाया , जीवन चलने का नाम है यही कहा जाता है, पर क्यों बहुत कुछ अधूरा रह जाता है । कभी इतनी निराशा हो जाती है कि कोई मार्ग नजर ही नहीं आता । बंद हो जाते है सभी रास्ते , अपने भी बेगाने लगने लगते हैं । ऐसा लगता है जैसे हर कोई हँसता है चाहे वो निगाहें अच्छी क्यों न हो पर वो भी चिढाती नजर आती है । शायद सोंच यहीं पर आकर स्थिर हो जाता है और हम अपनी दुनिया सीमित कर अपनी सोंच को भी सीमित कर लेते हैं ।
किसी ने कहा मेरे जीवन में बहुत सारे फूल खिले पर अपना कोई नहीं लगा क्यों ? क्या मैंने उन्हें अपनाया नहीं या वे मेरे हो ही नहीं सके ?
सवाल का जबाब भी था मेरे पास पर ऐसा लग रहा था जैसे उत्तर अपना नहीं पराया हो , बहुत उदासी छा जाती है कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूढने में । तर्क -बितर्क में जीवन के बहुत से रहस्य अपने आप खुल जाते है । हम अपने लिए बहुत कुछ चाहते हैं पर जरुरी तो नहीं कि हर चीज हमें मिल ही जाय। पर मन ये मानने के लिए तैयार ही नहीं होता ।
निराशा तो सभी के जीवन में कभी न कभी आती है लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि आदमी हार कर बैठ जाय । संघर्ष तो करना ही होगा क्योंकि यही जीवन कि वास्तविकता है । यह भी सही है कि समझाना आसान है पर अमल में लाना मुश्किल ।
और अंत में
कदम बढ़ा कि रस्ते खुद ही बनते जायेगे
जो कांटे भी होंगे तो वे भी फूल बनते जायेंगे
हो हौसला तो आग का दरिया भी पार कर सकेंगे
जीवन की चुनैतियों से हम खुद ही लड़ सकेंगे ।
किसी ने कहा मेरे जीवन में बहुत सारे फूल खिले पर अपना कोई नहीं लगा क्यों ? क्या मैंने उन्हें अपनाया नहीं या वे मेरे हो ही नहीं सके ?
सवाल का जबाब भी था मेरे पास पर ऐसा लग रहा था जैसे उत्तर अपना नहीं पराया हो , बहुत उदासी छा जाती है कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूढने में । तर्क -बितर्क में जीवन के बहुत से रहस्य अपने आप खुल जाते है । हम अपने लिए बहुत कुछ चाहते हैं पर जरुरी तो नहीं कि हर चीज हमें मिल ही जाय। पर मन ये मानने के लिए तैयार ही नहीं होता ।
निराशा तो सभी के जीवन में कभी न कभी आती है लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि आदमी हार कर बैठ जाय । संघर्ष तो करना ही होगा क्योंकि यही जीवन कि वास्तविकता है । यह भी सही है कि समझाना आसान है पर अमल में लाना मुश्किल ।
और अंत में
कदम बढ़ा कि रस्ते खुद ही बनते जायेगे
जो कांटे भी होंगे तो वे भी फूल बनते जायेंगे
हो हौसला तो आग का दरिया भी पार कर सकेंगे
जीवन की चुनैतियों से हम खुद ही लड़ सकेंगे ।
बहुत सुन्दर विचार...सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसमस्या की जड़ यह सोच है कि तर्क-वितर्क से सारे रहस्य खुलते जाते हैं। तर्क-वितर्क से हमने खुद को मुक्त किया ही कब था? वही तो करते रहे अब तक जिसके कारण समस्या इस हद तक आ पहुंची। आइए,एक स्वीकार भाव अपनाएं और सारे तर्क-वितर्क छोड़कर प्रश्नों को गिर जाने दें।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबधाई.
aap sabhi ko bahut bahut dhanyvad
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