शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

सपने 

बोझिल आँखें 
नींद से भरी रातें 
सरकते समय को 
पकड़ने की कोशिश 
रोजमर्रा की भागमभाग 
फिर भी बनते सपने 
जो खुली आँखों से 
देखे जाते , गढ़े  जाते 
टूटते , फिर बनते 
यथार्थ और कल्पनाएँ 
जहाँ एकाकार होने को आतुर 
रुकने का नाम न लेती 
हाँफती सांसें 
सपनों के बीच 
भागती रातें 
करवटों में गुजरती रातें 
बहुत कुछ पाने की होड़ में 
दौड़ लगाते 
कभी न थकते 
उम्मीद से बने इरादे 
पुनः बढ़ते जाते 
सपनों के दायरे ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. दौड़ लगाते
    कभी न थकते
    उम्मीद से बने इरादे
    पुनः बढ़ते जाते
    सपनों के दायरे,,,,,,बेहतरीन प्रस्तुति,,,,

    RECECNT POST: हम देख न सके,,,

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  2. बहुत सुंदर ..... यही जद्दोज़हद जीवन को चलाती है....

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  3. सपने जीवन में जीने की चाहत भरते हैं...सपने हैं तो जीवन हैं. बहुत अच्छा लिखा है.
    आपकी हमारी योजना में शामिल होने पर स्वागत है...
    आपका ब्लॉग भी देखा..काफी अच्छी रचनाएं हैं. आप अपनी पसंद भी बताइएगा वैसे मैं भी ब्लॉग दोबारा देखूंगी...
    अपना परिचय और फोटो मेल कर दीजिएगा....

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